हिंदी"जंग" से कम नहीं नौकरी करना
अहमदाबाद। देश के राष्ट्रपति तथा लोकसभा अध्यक्ष जैसे उच्च पदों पर भले ही महिलाएं हों, लेकिन एक ताजा शोध के निष्कर्ष पर भरोसा करें, तो आज भी देश में पुरूष प्रधान मानसिकता अड्डा जमाए हुए है। इस शोध में पाया गया है कि स्वतंत्रता के 62 वर्ष बाद भी पढ़ा-लिखा तबका तक महिलाओं को यह अहसास दिलाना नहीं भूलता कि वो एक महिला है। यही वजह है कि सरकारी और निजी क्षेत्र में अच्छे पद पर नौकरी प्राप्त कर लेने के बावजूद महिला कर्मचारी के लिए नौकरी एक जंग के मोर्चे से कम नहीं होती। ऎसी जंग कि जहां परेशानियां कार्यालय से लेकर घर तक उसका पीछा नहीं छोड़ती और वो मनोवैज्ञानिक व स्वास्थ्य समस्याओं से घिर जाती हैं।यह शोध गुजरात विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान भवन के अध्यक्ष डॉ. अश्विन जानसारी के मार्गदर्शन में विभाग के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम (एम.ए. सायक्लॉजी) के विद्यार्थियों ने एक वर्ष के अध्ययन के दौरान किया है। इसके बारे में जानकारी देते हुए डॉ. जानसारी ने बताया कि शोध में बैंक कर्मचारी, शिक्षिका, नर्स, सरकार के विभिन्न विभागों में लिपिक के रूप में सेवारत 21 से 56 वर्ष (आयु वर्ग) की 306 महिला कर्मचारियों से लिखित में राय मांगी गई। इसमें से 215 विवाहित थीं और 81 अविवाहित। इनकी शिक्षा दसवीं से लेकर पीएचडी और एमफिल तक की थी। महिलाओं को दो आयु वर्गो में विभाजित किया गया, जिसमें एक वर्ष 21 से 30 और दूसरा 31 से 56 का रखा गया।व्यावसायिक महिलाओं की समस्याएं और निदान विषय पर लिखित में मांगे गए विचारों की शोध से पता चला कि 66 फीसदी महिला कर्मचारी अपने ऊपरी अधिकारियों के प्रताड़ना का शिकार होती हैं। इसमें 21 से 30 आयु वर्ग की 188 महिलाओं में से 80 फीसदी ने कहा कि ऊपरी अधिकारी उनके महिला होने का लाभ उठाते हुए परेशान करते हैं। 36 फीसदी का कहना था कि वे महिला हैं इसलिए उन्हें सहकर्मचारियों का उतना सहयोग नहीं मिलता जितना कि पुरूषों को मिलता हैं।21 से 34 आयु वर्ग की महिला कर्मचारियों में से 45 फीसदी का कहना था कि उन्हें शारीरिक शोषण, छेड़छाड़ का सामना करना पड़ा है। 39 फीसदी महिला कर्मचारियों का कहना था कि नौकरी लगने के बाद वे चाहते हुए भी आगे नहीं पढ़ पाती हैं। उनकी शिकायतों पर पर्याप्त कार्यवाही नहीं होने के चलते उन्हें निरंतर प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।निजी कंपनी में सेवारत 21 से 30 वर्ष की 43 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे महिला हैं इसलिए उन्हें अपेक्षाकृत कम वेतन मिलता है, जबकि उनका पद और काम पुरूष सहकर्मी के बराबर होता है। 31 से 56 वर्ष की 27 फीसदी महिलाओं ने भी कम वेतन मिलने की बात कही। इतना ही नहीं 21 से 30 वर्ष की 48 फीसदी महिलाकर्मियों का कहना था कि उन्हें समय पर पदोन्नति और प्रोत्साहन नहीं मिलता है।51 फीसदी को मनोवैज्ञानिक समस्याकार्यालय और घर में पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के चलते नौकरी करने वाली 51 फीसदी महिलाएं किसी न किसी मनोवैज्ञानिक समस्या से पीडित पाई गई। मनोवैज्ञानिक समस्या से 21 से 30 आयु वर्ग की 63 फीसदी महिलाएं पीडित थीं, जबकि 31 से 56 वर्ष की महिलाओं में यह प्रतिशत 40 का था। 33 फीसदी महिलाकर्मियों का कहना था कि उन्हें भी सहकर्मचारियों की ओर से पर्याप्त सहयोग मिले तो वे भी अच्छा कार्य करने में सक्षम हैं। 49 फीसदी महिला कर्मचारियों का कहना था कि इनकी समस्याएं नहिवत हो जाएंगी यदि ऊपरी अधिकारी अच्छा व्यवहार करें। शारीरिक शोषण, छेड़छाड़ के मामले में 40 फीसदी महिला कर्मचारियों का कहना था कि उन्हें खुद ही शुरूआत में ही इसका कड़ा विरोध करना चाहिए, कानून, पुलिस कार्यवाही का भय दिखाना चाहिए।
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